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औरत का बदन ही उसका वतन नहीं होता


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आज अंतरराष्टï्रीय महिला दिवस है। सिनेमा में महिला की दशा की बात करने के लिए अब 'मदर इंडिया' या 'दुनिया न माने' की बात करने का कोई अर्थ नहीं रह गया है, क्योंकि यह 'डर्टी पिक्चर' का कालखंड है और विद्या बालन स्टार हो गई हैं। उनकी नई फिल्म जयंतीलाल गढ़ा की 'कहानी' शीघ्र ही प्रदर्शित होने जा रही है। एक गुमशुदा पति की तलाश में पत्नी दर-दर की ठोकर खाती है। कभी ऐसी फिल्म नहीं बन सकती कि एक पति अपनी अपहृत पत्नी की तलाश में यातना भोग रहा है, क्योंकि पुरुष अवचेतन में वह बलवान की 'भोग्या' है।
अपहरण करने वालों से आजाद होकर लौटी महिला के मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया जाता है। वह बेचारी न घर की रहती है न घाट की, क्योंकि उसके अनछुए बदन की कीमत है मर्र्दों के बाजार में। औरतों के बारे में जितने झूठ पुरुष के अवचेतन में मौजूद हैं, उतने झूठ पेशेवर गवाह भी नहीं बोलते। समय सब कुछ परिवर्तित करता है, केवल इस मामले में असफल रहता है।
करीना कपूर ने मधुर भंडारकर की 'हीरोइन' के लिए लगभग दस करोड़ रुपए और मुनाफे का प्रतिशत अपने मेहनताने के रूप में लिए हैं। मुंबइया व्यवसायिक सिनेमा में पहली बार किसी नायिका ने नायकों की तरह कहा है, 'साड्डा हक एत्थे रख'। आज फिल्मोद्योग में कैटरीना कैफ, करीना कपूर और प्रियंका चोपड़ा अपनी शर्र्तों पर काम करती हैं। जोया अख्तर अपने भाई फरहान की ताकत के दम पर ही सही, परंतु अपनी शर्र्तों पर फिल्में बनाती हैं। दीपिका पादुकोण ने रमेश तौरानी की 'रेस-2' छोड़कर रजनीकांत की फिल्म को वही समय दे दिया। प्राय: इस तरह की गैर-व्यवसायिक हरकत दंडित की जाती है, परंतु यहां समझौता कर लिया गया, क्योंकि दीपिका लोकप्रिय हैं।
यह तो स्पष्टï नजर आ रहा है कि फिल्म जगत में महिलाएं अपनी शक्ति को प्रदर्शित कर रही हैं। गौरतलब यह है कि महिला सितारों ने अपनी लोकप्रियता और शक्ति का आकलन करके अपना जायज मेहनताना लेना प्रारंभ कर दिया है। इसके साथ ही 'आइटम' की विशेषज्ञ भी भरपूर मेहनताना प्राप्त कर रही हैं, परंतु इन तमाम सफलताओं का आधार अभिनय प्रतिभा से अधिक शरीर प्रदर्शन पर टिका है, अत: बात घूम-फिरकर 'बदन' पर ही टिक रही है। इसलिए इसे महिला विजय के रूप में नहीं देखा जा सकता।
एक तथ्य यह भी है कि आज भी करीना कपूर या कैटरीना कैफ को अपने नायकों से बहुत कम पैसे मिलते हैं। नरगिस और मीनाकुमारी को भी अपने नायकों से कम धन मिलता था, परंतु उनका मेहनताना उनकी अभिनय क्षमता के लिए मिलता था, न कि शरीर प्रदर्शन के कारण। इस वर्ष मैरिल स्ट्रीप को बासठ साल की उम्र में तीसरा ऑस्कर मिला है और अब तक वह सत्रह बार इसके लिए नामांकित हो चुकी हैं। उन्हें पुरस्कार किसी 'डर्टी पिक्चर' के लिए नहीं, वरन 'आयरन लेडी' अर्थात 'लौह महिला' की भूमिका के लिए लिए मिला है। क्या बासठ साल की आयु में करीना कपूर या कैटरीना कैफ को कोई महत्वपूर्ण पुरस्कार मिलेगा? मैरिल स्ट्रीप का मेहनताना पुरुष सितारे से कम नहीं होता। बहरहाल, कुछ महिला सितारों का कहना है कि वे बहुत परिश्रम करके और खाने-पीने में संयम बरतकर ही अपना शरीर बना पाती हैं।

वर्र्षों बिना घी-तेल का भोजन करना और प्रतिदिन दो घंटे व्यायाम करना आसान काम नहीं है। अत: कसरत की आग से तपे शरीर का प्रदर्शन अपना अधिकार मानती हैं। उनका ख्याल है कि बदन उनकी पूंजी है और प्रदर्शन उस पूंजी पर कमाया लाभ या सूद है। उनका यह भी कहना है कि पुरुष सितारे भी अपने सुगठित शरीर की ही खा रहे हैं। क्या अब अभिनय प्रतिभा की बात करना अर्थहीन हो गया है? इन महिलाओं के द्वारा दिए गए तर्क वैसे ही हैं, जैसे व्यवसायिक सिनेमा में ताली बजवाने वाली लफ्फाजी। तालियों की गडग़ड़ाहट सत्य स्थापित नहीं करती और न ही सिक्कों की बौछार कोई माधुर्य रचती है। तंदुरुस्त रहना अच्छी बात है, परंतु आय का आधार अस्मिता होना चाहिए। लोग आपके आचरण और विचार से आपका आदर करें, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
दरअसल बाजार ने समाज में ऐसे मूल्य स्थापित किए हैं कि जो दिखता है, वह बिकता है। अब तो 'डर्टी पिक्चर' में अभिनय के लिए राष्टï्रीय पुरस्कार भ मिल गया। यह सोच आज आउटडेटेड है कि बुद्धि, आत्मा और चरित्र दिखते नहीं, तो क्या उनका सम्मान नहीं? बहरहाल, भीतर की बात यह है कि करीना कपूर और कैटरीना कैफ की व्यवसाय प्रबंधक रेशमा शेट्टïी हैं और वह अपनी बुद्धि, आचरण और कौशल से कम धन नहीं कमातीं। अन्य क्षेत्रों में भी अनेक महिलाएं सम्मान और धन कमा रही हैं। फिर भी परिवर्तन थोड़ा और सतही ही है। पाकिस्तान की सारा शगुफ्ता का कहना है कि 'औरत का बदन ही उसका वतन नहीं होता, वह कुछ और भी है।'
 
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