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ओ मेरे सोना रे..

Teesri Manzil 
सन 1966 में प्रदर्शित हुई हिट फिल्म तीसरी मंजिल कई खूबियों की वजह से अब तक सिनेमा प्रेमियों की यादों में बसी हुई है। लोगों को बांधे रखने वाली इसकी रहस्यमय कहानी, विजय आनंद का सुलझा हुआ निर्देशन और पंचम यानी आर. डी. बर्मन का सदाबहार संगीत और मजरूह सुल्तानपुरी के खूबसूरत बोल वाले यादगार गीत।
वैसे तो तीसरी मंजिल के सारे ही गाने हिट थे, जैसे-आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा., देखिए साहिबों वो कोई., दीवाना मुझसा नहीं इस अंबर के नीचे., तुमने मुझे देखा हो कर मेहरबां., और ओ हसीना जुल्फों वाली. लेकिन ओ मेरे सोना रे सोना रे सोना रे दे दूंगी जान जुदा मत होना रे. का तो कहना ही क्या। मोहम्मद रफी और आशा भोंसले केगाये इस रोमांटिक गीत का जादू वक्त बीतने के बाद भी और परवान चढ़ा है। इस गीत को सुनना जितना तब के लोगों को पसंद आता था, आज केश्रोता भी इसे एक बार सुन लेते हैं, तो भुला नहीं पाते हैं।
सदाबहार गीत ओ मेरे सोना रे सोना रे सोना रे. केबनने का एक दिलचस्प किस्सा है। इस गीत के संगीतकार आर. डी. बर्मन ने लंदन में एक जापानी बैले डांस देखा था। उसमें नर्तकी नाचते वक्त बीच-बीच में सोना सोना. भी कहती जाती थी। उसके सोना.कहने का ढंग इतना खूबसूरत था कितब जिसने भी उसे सुना दिल में उतार लिया। ऐसा ही हुआ पंचम के साथ भी। उन्होंने उसी वक्त तय किया कि अपने संगीतबद्ध किसी गीत में वे इस शब्द यानी सोना शब्द का इस्तेमाल इसी तरह की पुकार के साथ और खूबसूरती से जरूर करेंगे। यह अवसर भी उन्हें जल्दी ही मिल गया।
निर्माता नासिर हुसैन की सस्पेंस फिल्म तीसरी मंजिल के लिए जब आर. डी. बर्मन धुन बना रहे थे, तब एक गीत की धुन में उन्होंने सोना शब्द को फिट कर दिया। नासिर हुसैन ने जब यह धुन सुनी, तो उन्हें बने हुए संगीत में उस शब्द को सुनना अच्छा और अलग भी लगा। वे बहुत खुश हुए। फिल्म के निर्देशक विजय आनंद के साथ कुछ और लोगों को भी उन्होंने इस गीत को सुनाया, सभी को धुन पसंद आई। अब बात यह आई कि यों ही इस गीत को फिल्म में कैसे रखा जाए? विजय आनंद के साथ बैठ कर सोना शब्द को किसी भी तरह गीत में फिट करने के लिए सोचने का काम शुरू हुआ। अंत में आइडिया तय हुआ। इन सभी ने मिलकर फिल्म में हीरो शम्मी कपूर का नाम अनिल कुमार होता है और लोग उसे रॉकी के नाम से बुलाते हैं, बावजूद इसके रॉकी केप्यार का नाम सोना रख दिया और एक खास सिचुएशन बनाई, जहां हीरो के कई बार कहने के बावजूद हीरोइन सुनीता यानी आशा पारेख उसे सोना नाम से नहीं पुकारती है, लेकिन एक बार जब रॉकी रूठ जाता है, तब सुनीता गीत ओ मेरे सोना रे सोना रे सोना रे दे दूंगी जान. गाकर उसे मना लेती है।
पर्दे पर यह गीत का जादू ऐसा था कि जब नासिर हुसैन ने बाद में धर्मेद्र और जीनत अमान आदि को लेकर फिल्म यादों की बारात बनाई, तो उसमें भी ओ मेरे सोना रे. गीत से मिलता जुलता गीत ओ मेरी सोनी, मेरी तमन्ना झूठ नहीं मेरा प्यार. गीत रखा। आर. डी. बर्मन के संगीत से सजा यह गीत भी खूब हिट हुआ और साथ ही फिल्म भी.।

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