बैनर : क्लॉकवर्क फिल्म्स प्रा.लि., फिश आई नेटवर्क प्रा.लि.
निर्माता : पूजा भट्ट, डीनो मोरिया
निर्देशक : पूजा भट्ट
संगीत : आर्को, मिथुन, प्रावो मुखर्जी
कलाकार : सनी लियोन, रणदीप हुडा, अरुणोदय सिंह
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 12 मिनट 5 सेकंड
रेटिंग : 1/5
सनी लियोन के हां कहते ही महेश भट्ट को लगा कि जैकपॉट उनके हाथ लग गया है और ताबड़तोड़ फिल्म बनाकर जिस्म 2 नाम से रिलीज भी कर दिया। सनी का क्रेज लोगों के बीच कम न हो जाए इसलिए उस बुलबले को फटने के पूर्व भुनाने की कोशिश में यह भी ध्यान नहीं दिया गया कि कहानी ठीक से पकी है या नहीं, निर्देशक ने अपना काम जवाबदारी से किया है या नहीं, कलाकारों की एक्टिंग अच्छी है या नहीं।
ग्लैमर वर्ल्ड के महेश भट्ट पुराने खिलाड़ी हैं। फिल्म की कहानी और स्क्रिप्ट की उन्हें अच्छी समझ है, लेकिन साथ में वे चतुर व्यवसायी भी हैं। फिल्मकार पर बिज़नेसमैन तो बहुत पहले ही हावी हो चुका है, लेकिन इस बात तो हद पार कर गया। सनी लियोन की ताजी लोकप्रियता का फायदा उठाने के चक्कर में उन्होंने अत्यंत घटिया माल परोस दिया है।
जिस्म 2 को देखने के लिए सिनेमाघरों में जो भीड़ टूट पड़ी है उसमें से 90 प्रतिशत को सिर्फ सनी लियोन के स्किन शो से मतलब है। कहानी, निर्देशन या एक्टिंग को लेकर वे बात नहीं करना चाहते हैं, लेकिन उनके हाथ भी मायूसी लगेगी। ट्रेलर और फोटो में फिल्म की तुलना में ज्यादा मसाला है।
सनी ने तो पहले ही सच्चाई बयां कर दी थीं कि फिल्म उतनी बोल्ड नहीं है जितनी की उम्मीद की जा रही है। लेकिन सनी की बोल्डनेस की क्या सीमा है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल काम है। जो लोग इस प्रश्न का जवाब जानना चाहते हैं कि फिल्म में स्किन शो कितना है, उन्हें जवाब मिल ही गया होगा।
सनी लियोन फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पाइंट हो सकती थीं, यदि उनका रोल बेहद बोल्ड होता या हॉट सीन की भरमार होती, लेकिन सनी की इस खासियत(!) का कोई फायदा 'जिस्म 2' की टीम नहीं उठा सकी। इस वजह से सनी फिल्म का सबसे बड़ा माइनस पाइंट हो गईं।
पोर्न फिल्म की एक्टिंग (!)और फीचर फिल्म की एक्टिंग में कितना अंतर होता है ये सनी को पता लग ही गया होगा। 'मैं कपड़े खोलकर देश की सेवा कर रही हूं' जब वे बोलती हैं तो उनकी एक्टिंग को देख हंसी और गुस्सा एक साथ आता है। ज्यादातर दृश्यों में उन्होंने सिर्फ गहरी सांसे ही ली हैं। जब तक वे चुपचाप बैठी रहती हैं एक सुंदर गुड़िया की तरह नजर आती हैं, लेकिन डायलॉग बोलने के लिए मुंह खोलते ही मामला चौपट हो जाता है।
अब कहानी पर जरा गौर फरमा लीजिए। इंटेलिजेंस ऑफिसर अयान (अरुणोदय सिंह) हत्यारे कबीर (रणदीप हुडा) को पक्रडने के लिए खूबसूरत इज्ना (सनी लियोन) का सहारा लेता है। इज्ना के जरिये कबीर तक पहुंच कर वह उसका डाटा हासिल कर लेना चाहता है।
6 वर्ष पहले इज्ना कबीर की प्रेमिका रह चुकी है, जब कबीर पुलिस के लिए काम करता था। अब इज्ना भी चाहती है कि कबीर सलाखों के पीछे हो। कबीर हत्यारा क्यों बना? क्या इज्ना इस मिशन में कामयाब होगी? अयान की असलियत क्या है? जैसे सवालों के जवाब अंत में मिलते हैं।
इस कहानी को स्क्रीन पर देखते हुए इतने प्रश्न उठते हैं कि सवाल करते-करते थक जाएं। कबीर के घर के सामने इज्ना और अयान रहने लगते हैं। कबीर जब सामने है तो अयान उसके घर घुस उसे आसानी से डाटा हासिल कर सकता है, उसे मार गिरा सकता है, इज्ना की जरूरत ही क्या है? इन सवालों के जवाब में जो तर्क पेश किए गए हैं वो बेदम हैं और उनके जरिये किसी तरह कहानी को आगे बढ़ाया गया है। अंतिम पन्द्रह मिनटों में ही फिल्म में थोड़ी दिलचस्पी पैदा होती है, बाकी हिस्सा तो बोरियत से भरा हुआ है।
पूजा भट्ट न तो इस कहानी को रोचकता के साथ पेश कर पाईं और न ही कमियों को छुपा पाईं। उनके प्रस्तुतिकरण में स्मूथनेस नहीं है। उबड़-खाबड़ सड़क पर चलने का अनुभव फिल्म देखते समय होता है।
कलाकार अचानक चीखने-चिल्लाने लगते हैं। हैरानी इस बात पर होती है कि यह ऐसा क्यों कर रहा है, क्योंकि ठीक सिचुएशन ही नहीं बनाई गई है। अरुणोदय सिंह और आरिफ जकारिया के बीच के सारे सीन ऐसे ही हैं। गानों का सही इस्तेमाल भी पूजा नहीं कर पाई हैं।
रणदीप हुडा को हत्यारा बताया गया है, लेकिन कभी उसे अपना ये काम करते या योजना बनाते नहीं दिखाया गया है। वह वायलिन बजाते हुए ज्यादा नजर आता है। रणदीप का किरदार ही कुछ ऐसा था कि उसमें उनके एक्सप्रेशन लेस चेहरे से काम चल गया। उनकी संवाद अदायगी जरूर बेहतर हुई है। अरुणोदय सिंह बिलकुल प्रभावित नहीं कर पाएं। सनी लियोन सबसे ज्यादा निराश करती हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस जिस्म में न तो रूह है और न ही खूबसूरती।


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