आज देश-विदेश के लगभग चार हजार बड़े परदों पर प्रदर्शित सलमान खान अभिनीत फिल्मकार सिद्दीक की फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ पर दर्शक तालियां बजा रहे हैं और नायक सलमान खान न्यूयॉर्क के अस्पताल में अपना इलाज करा रहे हैं। फिल्मों में लार्जर दैन लाइफ छवि को प्रस्तुत करने वाला नायक जो एक साथ दर्जनों को धराशायी करता है और पैंतालीस साल की उम्र में जिसके बलिष्ठ शरीर सौष्ठव को लोग सराहते हैं, वह सुपरहीरो एक छोटी-सी पतली-सी नस के कहीं उलझ जाने के कारण विगत कई महीनों से बेइंतहा दर्द सह रहा है। कल बुधवार को न्यूयॉर्क के अस्पताल में भारतीय समयानुसार शाम पांच बजे उनकी सर्जरी शुरू हुई, जो चार-पांच घंटे तक चली।
यह ऊपरवाले की पटकथा अजीब है कि सबसे सशक्त व्यक्ति एक पतली-सी नस के उलझने के कारण असहाय पड़ा है। दुनिया में तमाम गर्व करने वाले लोग सोचें कि सारी शक्ति महज भ्रम है और हम सब रेशम-सी पतली डोर से बंधी कठपुतलियां हैं। इन सब तथ्यों को जानने के बाद भी मनुष्य अपने ओछेपन से बाज नहीं आता। सलमान ने स्वयं कभी किसी चीज का गर्व नहीं किया और वह क्षण-प्रतिक्षण अपने अस्तित्व के लिए ऊपरवाले को धन्यवाद देते रहे हैं।
‘बॉडीगार्ड’ में भी सलमान अपनी अन्य फिल्मों की तरह एक लोकप्रिय संवाद कहते हैं कि मुझ पर इतना एहसान करना कि कोई एहसान नहीं करना, परंतु वह दिल ही दिल में हमेशा ऊपरवाले को याद करते रहे हैं। आज उन्हें दुआ और प्रार्थना की आवश्यकता है। हम सभी लोग शायद आज की आपाधापी के दौर में मात्र संयोगवश ही जीवित हैं, वरना जीवन तो कच्चे धागे से बंधा है। अपने विश्वसनीय एक्शन दृश्यों के लिए प्रसिद्ध इस सुपरहीरो की रगों में लेखक सलीम साहब का खून बहता है।
इस फिल्म की पटकथा और संवाद का श्रेय सिद्दीक के अलावा इस खाकसार और किरण कोटियार को दिया गया है, परंतु हम तीनों के बराबर ही सृजन सहयोग सलमान खान का भी है। सच तो यह है कि विगत अनेक वर्षो से अपनी फिल्म के दृश्य और संवाद में परिवर्तन वह स्वयं शूटिंग के समय करते हैं और अवाम को अच्छी लगने वाली बातों की उन्हें पूरी जानकारी है। वह अपने एक्शन दृश्यों में भी टेक्नोलॉजी की सुविधाओं का उपयोग करते हुए खुद भी जोखिम के कई काम करते हैं।
आज पूरे देश के छोटे-बड़े शहरों में जिम्नेशियम खुल गए हैं और युवा वर्ग इनमें भरपूर कसरत भी करता है। दरअसल अब जिम जाने वाले एक-दूसरे को दूर से देखकर भी पहचान लेते हैं और उनकी आपसी बातचीत की भाषा में जिम के मुहावरे आने लगे हैं। अफसोस कि अब लाल मिट्टी वाले अखाड़े में कम लोग जाते हैं और जिम जाना जीवनशैली का हिस्सा हो गया है।
अखाड़ों में दंड पेलने वालों के शरीर पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और मिट्टी का स्पर्श जीवन स्पंदन को गहरे अर्थ भी देता है, परंतु जिम में विशेषज्ञ की देखरेख के बगैर कसरत करने के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।
जिम जाने वालों को प्रोटीन, एमिनो एसिड इत्यादि सही मात्रा में लेना पड़ता है, वरना उनका शरीर ही दुश्मन बन सकता है और पूरी तरह इसमें डूबने पर इसके लिए आवश्यक विटामिन इत्यादि पर प्रतिमाह पचास हजार खर्च होता है। इसके लिए विशेष रूप से बनाए गए विटामिन इत्यादि भारत में नहीं बनते, परंतु शीघ्र ही विदेशी सहयोग से यहां बनने वाले हैं।
आज जिम बहुत बड़ा व्यापार बन चुका है और बाजार की ताकतें इसे नशे की तरह बेच रही हैं। फिल्मोद्योग में पृथ्वीराज कपूर नियमित दंड-बैठक लगाते थे, परंतु सनी देओल और सलमान खान ने जिमिंग को यहां बहुत लोकप्रिय कर दिया है। बहरहाल, ‘बॉडीगार्ड’ महज एक्शन फिल्म नहीं है। इसकी प्रेम कथा में बहुत घुमाव हैं। नायक-नायिका के चरित्र प्रेमल होते हुए भी कर्तव्य और संस्कार के प्रति सजग हैं। यह पारिवारिक मनोरंजन है।
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