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'बड़े परदे से ज्यादा अदाकारी तो नेता अपनी निजी जिंदगी में करते हैं’

उनका राजनीतिक करियर असफल रहा। सत्ता समीकरणों में नासमझ संजय दत्त की नेता बनने की दबी-छिपी ख्वाहिश भी अब मर चुकी है। वे तो खादीधारी नेताओं को मानते हैं रीयल लाइफ के एक्टर।

बात कुछ ही समय पहले की है जब संजय दत्त संसद सदस्य बनने के ख्बाव संजोया करते थे। पिता सुनील दत्त के नक्शेकदमों पर चलने की इस ख्वाहिश ने उनके लिए केवल नए विवादों को ही जन्म दिया है। यहां तक कि उनकी जादू की झप्पी भी विवादों का शिकार हो गई थी।
कालांतर में पूर्व सपा सचिव अमर सिंह के साथ मतभेद दूर हुए और संजय ने स्वीकार लिया कि उनके कदम इतने पक्के नहीं हैं कि वे राजनीतिक गलियारों में तटस्थ होकर चल सकें। वे कहते हैं, ‘मैं एक्टर हूं, मेरी सोच रचनात्मक है। फिलहाल मैं अपनी फिल्मों व प्रोडक्शन हाउस पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं। पिछले दिनों मैं उत्तर प्रदेश गया था। मैंने देखा बॉलीवुड के बड़े परदे से ज्यादा अदाकारी नेतागण अपनी निजी जिंदगी में करते हैं।’

वे फिलहाल किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ाव का इंकार करते हैं। बात संबंधों की हो तो पॉलिटीकल सर्कल में अमर सिंह सहित उनके कई दोस्त हैं।
वे होम प्रोडक्शन की फिल्म रास्कल्स को लेकर उत्साहित तो बहुत हैं लेकिन बात पीआर की हो तो संजय यहां भी कच्चे हैं। वे स्वीकार करते हैं फिल्म व स्वयं के पीआर को लेकर वे अन्य कलाकारों की तरह एक्टिव नहीं हैं। सफल फिल्म के लिए पीआर का महत्व वे समकक्षों से सीख रहे हैं।

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