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कागजी और बनावटी


विशाल म्हाडकर की पहली फिल्म ब्लड मनी कहानी और मनोरंजन के नाम पर कुछ भी नया नहीं देती। उन्होंने भट्ट कैंप के लिए यह फिल्म बनाई है। भट्ट कैंप का प्रचलित फार्मूला है। नए या कम मशहूर कलाकार, प्रेम की तीव्रता, सेक्स, धोखा, भावनात्मक उलझन, कुछ अच्छे गाने और लोकेशन ़ ़ ़ भट्ट कैंप की चार में से एक फिल्म इसी फार्मूले पर चल जाती है। अफसोस है कि भट्ट कैंप मिले अवसरों और पैसों का सदुपयोग करना नहीं चाहता। अगर वॉयकॉम 18 ने इतना ही धन किसी नए डायरेक्टर की फिल्म में लगाया होता तो अवश्य ही कुछ नया देखने को मिलता।

सामान्य सी कहानी है। मिडिल क्लास का एक लड़का अपनी अमीर आकांक्षाओं के साथ दक्षिण अफ्रीका पहुंचता है। लोभ में वह गैरकानूनी काम करने से भी नहीं हिचकता। बीवी के नाराज होने तक उसे सब जायज लगता है। बाद में वह संभलता है। गैरकानूनी धंधे को खत्म करने के साथ वह इस दुष्चक्र से निकलता है। लेखक-निर्देशक ने बहुत सतही तरीके से स्थितियों और किरदारों का चित्रण किया है। लगता है कि महेश और मुकेश भट्ट ने निर्देशक विशाल म्हाडकर को हाथ साफ करने का मौका दिया है।

साधारण दृश्य, सतही संवाद और हास्यास्पद एक्शन ़ ़ ़ ब्लड मनी हर तरह से निराश करती है। क्या इस फिल्म से महेश भट्ट किसी भी स्तर पर जुड़े हैं? भट्ट कैंप के कलाकार कुणाल खेमू ने इस बुरी स्क्रिप्ट में ही बेहतर करने की कोशिश की है। कुछ दृश्यों में वे बहुत प्रभावशाली लगे हैं, लेकिन निर्देशक ने उनकी प्रतिभा का समुचित उपयोग नहीं किया है। अमृता पुरी सुंदर दिखी हैं। उनके किरदार पर ध्यान ही नहीं दिया गया है। बाकी किरदार भी कागजी और बनावटी लगते हैं। खासकर खल भूमिकाओं के कलाकारों के हाव-भाव कृत्रिम लगते हैं।

** दो स्टार
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