![]() |
| aashirvad |
राजेश खन्ना की मौत के बाद उनकी लिव-इन पार्टनर अनीता आडवाणी और उनका बंगला 'आशीर्वाद' सबसे ज्यादा चर्चा में है। बताया जाता है कि अनीता ने खन्ना के परिवार को 'आशीर्वाद' से नहीं निकाले जाने को लेकर नोटिस दिया है और वह बंगले को 'म्यूजियम में तब्दील करने की खन्ना की अंतिम इच्छा' पूरी करवाना चाहती हैं।
अनीता के बारे में ज्यादा जानकारी सार्वजनिक नहीं है। वह तीन बहनों में सबसे छोटी हैं और बॉलीवुड में भी किस्मत आजमा चुकी हैं। अनीता पहले वेस्ट ब्रांदा के सेंट टेरेसा चर्च के पास की बिल्डिंग तुलसी महल में रहा करती थीं। उनकी बड़ी बहन शादी के बाद ससुराल चली गईं। उसके बाद अनीता अपनी मंझली बहन और मां के साथ वहां रहती थीं।
बाद में वे वेस्ट ब्रांदा के ही मारिल्यन हाउस में रहने लगीं।
फिल्म में काम की तलाश में उनकी मुलाकात 1980 में निर्माता राजकुमार कोहली से हुई थी। कोहली ने उन्हें अपनी फिल्म 'साजिश' में ब्रेक दिया, जो 1988 में रिलीज हुई। इस फिल्म में अनीता ने मिथुन चक्रवर्ती की बहन गीता का किरदार निभाया था। बॉलीवुड में इससे ज्यादा उनका कॅरियर चल नहीं सका। इसके बाद उन्होंने क्या किया, इसकी जानकारी भी बहुत कम लोगों को है।मायानगरी के लोगों के लिए यह आज भी रहस्य बना हुआ है कि अनीता राजेश खन्ना के करीब कैसे आईं। काफी समय से लोगों ने उन्हें उनके खुद के घर में भी नहीं देखा था। लेकिन राजेश खन्ना की मौत के बाद वह लगातार सुर्खियों में हैं। सुपरस्टार का बंगला 'आशीर्वाद' भी सुर्खियों में है। इस बंगले का एक अलग ही इतिहास रहा है। किसी जमाने में यह 'भूत बंगला' के नाम से बदनाम था। साठ के दशक में कार्टर रोड पर ईस्ट इंडियन कम्यूनिटी और पारसियों के ही बंगले थे। इलाके में सिर्फ संगीतकार नौशाद का बंगला 'आशियाना' ही ऐसा था, जिसका खूब नाम था। नौशाद के बंगले के बगल में एक दो मंजिला बंगला हमेशा खाली रहा करता था। इसमें कोई नहीं रहता था। स्थानीय लोग इसे 'भूत बंगला' कहा करते थे। इस बंगले में देखभाल करने वाला तक कोई नहीं था। बंगले के मालिक इसे कम कीमत में बेचना चाहते थे। फिर भी कोई खरीदने को तैयार नहीं था। बरसों बीत गए लेकिन कोई भी इस बंगले को खरीदने का साहस नहीं दिखा पाया।
उसी दौरान राजेंद्र कुमार को रहने के लिए आशियाने की तलाश थी। उन्हें वह बंगला बिकाऊ होने की बात पता चली। उन्होंने अपने दोस्त मनोज कुमार से पूछा। मनोज ने उन्हें बताया कि वज पूजा-पाठ कर बंगले में आराम से रह सकते हैं। लेकिन दिक्कत यह थी कि राजेंद्र कुमार के पास पैसे नहीं थे। तब वह फिल्म निर्माता बीआर चोपड़ा के पास गए। उनसे कहा कि वह न सिर्फ 'कानून', बल्कि उनकी और दो फिल्मों में काम करने के लिए तैयार हैं। इसके लिए शर्त यह है कि उन्हें मेहनताना एडवांस में दिया जाए। चोपड़ा ने राजेंद्र कुमार को 90 हजार रुपये दिए और 60 हजार में कुमार ने बंगले का सौदा कर लिया। राजेंद्र कुमार ने बंगले को नई शक्ल और नया नाम दिया। उन्होंने अपनी बेटी डिंपल के नाम पर इस बंगले का नाम रखा 'डिंपल'।
उन्होंने बंगले में मनोज कुमार के लिए भी एक कमरा रिजर्व रखा। मनोज कुमार और राजेंद्र कुमार की दोस्ती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजेंद्र कुमार ने अपने बेटे का नाम मनोज रखा। वही मनोज बाद में कुमार गौरव के नाम से फिल्मों में आए।डिंपल' में रहते हुए ही राजेंद्र कुमार को बॉलीवुड में सफलता मिली।
उनकी हर फिल्म सुपर हिट होती गई। फिल्में जब लगातार जुबली हिट होने लगीं तो राजेंद्र कुमार का नाम ही 'जुबली कुमार' पड़ गया। राजेंद्र कुमार ने जैसी सफलता पाई, वैसी सफलता उस दौर में किसी और ने नहीं पाई थी। इसके बाद उन्होंने पाली हिल में एक और बंगला बनवाया। उन्होंने उसका भी नाम 'डिंपल' ही रखा। उस दौर में बॉलीवुड में राजेश खन्ना तेजी से अपने पांव जमा रहे थे। उनकी फिल्में हिट होती गईं। उन्होंने अच्छी कमाई कर ली थी। उनके पास पहले से भी पैसे की कमी नहीं थी। इस बीच, उन्हें पता चला कि राजेंद्र कुमार कार्टर रोड वाला बंगला बेचना चाहते हैं। राजेश खन्ना को लगता था कि उस बंगले में वह गए तो उन्हें भी राजेंद्र कुमार जैसी ही कामयाबी मिलेगी। सो उन्होंने 31 लाख में बंगला खरीद लिया।राजेश खन्ना बंगले का नाम 'डिंपल' ही रखना चाहते थे, लेकिन राजेंद्र कुमार ने यह कह कर मना कर दिया कि उनके पाली हिल वाले बंगले का नाम भी 'डिंपल' है। तब खन्ना ने बंगले का नाम 'आशीर्वाद' रखा।
हालांकि बंगले में आने के बाद राजेश खन्ना सुपर स्टार भी बने और उनकी जिंदगी में डिंपल (कपाडि़या) भी आईं।
राजेश खन्ना की सफलता के दौर में 'आशीर्वाद' मुंबई के सबसे मशहूर बंगलों में शुमार हो गया। हालांकि कुछ वर्षों बाद राजेश खन्ना की जिंदगी ने ऐसी करवट बदली कि इतने बड़े बंगले में भी वह तनहा रह गए। उनका करियर उतार पर चला गया। उनका चिड़चिड़ापन बढ़ता गया। पत्नी डिंपल दोनों बच्चों के साथ घर छोड़ कर चली गईं। राजेश खन्ना ज्यादातर समय दफ्तर में ही गुजारते। रात में सिर्फ सोने के लिए वह बंगले पर आते थे। पूरा बंगला बंद रहता, सिर्फ एक कमरा उनके लिए खुला रहता। राजेश खन्ना की अंतिम ख्वाहिश यही थी कि इस बंगले को म्यूजियम में बदल दिया जाए। उनकी इस इच्छा का क्या होगा, यह आने वाले समय में ही पता चलेगा।

0 comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.