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वर्चस्व की लड़ाई


अब ऐसी फिल्में भी आने लगी हैं, जिनमें न तो मनोरंजन होता और न ही कोई मैसेज। बस देखते हुए लगता है कि हम कोई खास जगह का या किसी विषय पर कोई डॉक्यू ड्रामा देख रहे हैं। गैंग्स ऑफ वासेपुर के बाद अब इस कड़ी की अगली फिल्म मैक्सिमम आई है। दो नंबर का धंधा करने वालों में तो गोलीबारी और मार-काट आम बात है, लेकिन पुलिस वाले भी खुद को दबंग साबित करने के लिए कुछ ऐसा ही करते हैं, यही कहानी फिल्म मैक्सिमम की है।

एक और अहम बात यह है कि ऐसे कामों में अगर अपने आला अधिकारी के साथ-साथ राजनीतिक सपोर्ट भी मिल जाए, तो जाहिर है कि कोई भी इंसान मैक्सिमम की चाह पाल लेगा। लेकिन हर चीज की अति बुरी होती है और उसका अंत भी वैसा ही जैसा इस फिल्म में होता है।
sonu-sood, Naseeruddin Shah 

कबीर कौशिक निर्देशित इस फिल्म की कहानी मुंबई की है और काल है 2003 से लेकर 2008 का। जब मुंबई में अंडरव‌र्ल्ड के लोग सक्त्रिय हुए थे। उनसे लोहा लेने के लिए पुलिस में कुछ ऐसे लोग आए थे, जो एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जाने जाते थे। ऐसे ही लोगों में एक है प्रताप पंडित यानी सोनू सूद और दूसरे इनामदार यानी नसीरुद्दीन शाह। दोनों पर मुंबई पुलिस को गर्व है और इनकी बहादुरी को लेकर किसी को कहीं कोई शक नहीं है। इसी कड़ी में जब बात आगे बढ़ती है, तब पंडित और इनामदार दो खेमों में बंट जाते हैं। दोनों को अधिकारी और नेताओं का सपोर्ट है। फिर दोनों के बीच शुरू होती है अहम की लड़ाई और इसमें जानें जाती हैं दोनों के आदमी और मुखबिरों की। पंडित ने चालीस लोगों को मारा है तो इनामदार ने 56 को। इसी जद्दोजेहद में एक बार अपने अप्रोच का फायदा उठाकर इनामदार पंडित को एक केस में फंसा देता है, जिस कारण पंडित को घर में बैठना पड़ता है, लेकिन फिर पंडित बहाल होता है और शुरू होती है एक-दूसरे को नीचा दिखाने की जंग।

अबकी बार पंडित भारी पड़ता है, लेकिन उसकी पत्‍‌नी दम तोड़ देती है। ऐसे में इनामदार के पास और कोई चारा नहीं बचता तो वह स्टेशन पर पहुंचता है। स्टेशन पर पंडित अपनी बेटी को अपने साथियों के साथ ट्रेन में बिठाने आता है, वहीं इनामदार और पंडित के बीच गोलीबारी होती है जिसमें दोनों एक-दूसरे के हाथों मारे जाते हैं।

अभिनय की बात करें तो पूरी फिल्म में सोनू सूद और नसीर साहब छाए हैं। इनके अलावा अन्य छोटे किरदारों में दिखने वाले कलाकार विनय पाठक, नेहा धूपिया, अमित साद, स्वानंद किरकिरे, राजेंद्र गुप्ता, मोहन आगाशे, अंजना सुखानी, आर्य बब्बर ने भी अच्छा काम किया है। कहानी के हिसाब से इस फिल्म में गीत-संगीत को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली है, फिर भी आइटम नंबर के रूप में गीत रखे गये हैं। खासकर आ अंटे अमलापुरम.. अलग बना है।
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