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दूसरों की कविताएं अपने नाम से सुनाता था : प्रेम चोपड़ा


गहरी नजरों से देखते हुए प्रेम चोपड़ा के धीमे स्वर में निकले शब्द ‘प्रेम नाम है मेरा..प्रेम चोपड़ा..’ आज भी सिनेप्रेमियों को याद हैं, जिन्हें सुन कर रगों में बहता खून जैसे जम-सा जाता था। इन पंक्तियों को अमर बनाने वाले इस खलनायक का कहना है कि किसी कलाकार के लिए अच्छा व्यक्ति होना बहुत जरूरी है और इसका असर उसके काम पर भी पड़ता है और आपको आपका काम ही आगे ले जाता है। आपकी अच्छाई की वजह से काम का माहौल भी अच्छा बना रहता है और बोझिल नहीं लगता। अगर आपके अंदर कोई बुराई है तो आपको क्यों पसंद किया जाएगा।’’

हिन्दी फिल्मों में इस बेजोड़ खलनायक को अभिनय के अलावा कविताओं से भी गहरा लगाव रहा है। उन्होंने कहा ‘‘मुझे हमेशा से ही कविताओं का शौक रहा है। शुरू में मैं अपने दोस्तों के सामने कविताएं सुनाता था। मैं बहुत शरारती भी था और दूसरों की कविताएं अपनी कह कर उन्हें सुना देता था। हालांकि बाद में मैं यह भी बता देता था कि कविता वास्तव में किसकी है। बाद में मैंने खुद भी कुछ लिखा और लोगों को सुनाया। कुछ ने मेरी तारीफ की और कुछ ने आलोचना।’’

उम्र के 70 वें पायदान को पार कर चुके प्रेम चोपड़ा को आज भी सीखने में कोई परहेज नहीं है। ‘‘मुझे सीखना पसंद है। आज तक मैं चाहता हूं कि कुछ न कुछ सीखूं। कविताओं की आलोचना सुन कर मैंने जानना चाहा कि इनमें क्या कमी है और कहां सुधार किया जा सकता है।’’

उनके कुछ डायलॉग लोगों की जुबान पर चढ़ गए जैसे बॉबी फिल्म का ‘प्रेम नाम है मेरा..प्रेम चोपड़ा..’ और सौतन फिल्म का ‘मैं वो बला हूं जो शीशे से पत्थर को तोड़ती है।’ प्रेम चोपड़ा फिल्म ‘कुंवारी’ में नायक बने थे। वह कहते हैं ‘‘इसीलिए यह फिल्म मेरे लिए खास महत्व रखती है।’’ यह उनकी शुरुआती फिल्मों में से एक है।

‘शहीद’ प्रेम चोपड़ा की पसंदीदा फिल्म है, जिसमें उन्होंने देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव का किरदार निभाया था। उपकार, दो रास्ते, कटी पतंग, दो अजनबी, दोस्ताना, जंगबाज, रखवाला, मजबूर, फूल बने अंगारे सहित 300 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके प्रेम चोपड़ा का जन्म लाहौर में 23 सितंबर 1935 को हुआ था।

विभाजन के बाद उनके पिता रणबीर लाल चोपड़ा अपने परिवार को लेकर भारत आए और शिमला में बस गए। यहीं प्रेम चोपड़ा बड़े हुए। पिता चाहते थे कि प्रेम चोपड़ा डॉक्टर बनें। लेकिन बॉलीवुड को एक दमदार खलनायक का इंतजार था। प्रेम ने अपने खलनायकी के तेवर दर्शकों को लंबे समय तक दिखाए और अभी भी फिल्मों में नजर आते हैं।
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