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फिल्म रिव्यु : तेरे बिन लादेन डेड और अलाइव - Film Review: Tere Bin Laden: Dead or alive




रेटिंगः 2 स्टार
कलाकारः मनीष पॉल, पीयूष मिश्र, प्रद्युम्न सिंह और सिकंदर खेर
डायरेक्टरः अभिषेक शर्मा

साल 2010 में अली जफर और प्रद्युम्न सिंह की तेरे बिन लादेन आई थी और अपने सधे हुए कॉमेडी फैक्टर की वजह से यह फिल्म बड़ी ही खामोशी के साथ दर्शकों के दिल में उतर गई थी. फिल्म में हर वह बात थी जो इसे दर्शकों के दिलों में उतारने के लिए काफी थी, चाहे वह कहानी हो या कॉमेडी फैक्टर या फिर ऐक्टर्स की परफॉर्मेंस.
लेकिन छह साल बाद इसका सीक्वल आया और इसे देखकर बॉलीवुड के डायरेक्टरों पर इस बात को लेकर झुंझलाहट होती है कि अगर आपके पास कहानी नहीं है तो फिर सीक्वल बनाने की क्या दरकार है. 'तेरे बिन लादेन डेड और अलाइव' कुछ ऐसी ही फिल्म है जिसे देखकर मन में यही सवाल पैदा होता है कि आखिर डायरेक्टर और पटकथा लेखक दिखाना क्या चाहते थे?

फिल्म के पहले 10 मिनट 'तेरे बिन लादेन' के साथ सीक्वल के तार जोड़ने की जुगत में लगाए जाते हैं और दिखाया जाता है कि आखिर तेरे बिन लादेन फिल्म को कैसे बनाया गया था. एक लड़का मनीष पॉल है जिसके पिता हलवाई हैं लेकिन वह कुछ बड़ा करना चाहता है. वह मुंबई आता है और उसे प्रद्युम्न सिंह मिलता है और वह उसे लादेन बनाकर तेरे बिन लादेन फिल्म बनाता है. वह हिट हो जाती है. उसके बाद सीक्वल बनाने की तैयारी होती है लेकिन इस बीच लादेन मारा जाता है. उधर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा पर लादेन को मारने के बारे में सबूत देने का दबाव है. एक आतंकी संगठन का सरगना पीयूष मिश्र है जिसे लादेन के मारे जाने की वजह से अपने हथियारों के कारोबार पर खतरा मंडराता लगता है. फिर सबकी नजर नकली लादेन प्रद्युम्न सिंह पर जाकर रुकती है .
इस तरह कहानी चलती है, लेकिन पहले हाफ में जहां सिकंदर खेर, पीयूष मिश्र और कहीं-कहीं मनीष पॉल गुदगुदाते हैं लेकिन सेकंड हाफ में आते-आते फिल्म हांफने लगती है और लगने लगता है कि डायरेक्टर समझ नहीं पा रहे कि अब क्या करना है. अचानक बहुत ही प्यार के साथ एक अंत हो जाता है. फिल्म की कहानी कमजोर है और यह टुकड़ों में ही अच्छी लगती है

फिल्म में मनीष पॉल का काम ठीक ही रहा है. उन्हें फिल्म डायरेक्टर का काम मिला है, और उन्होंने उसे निभाने में जी-जान लगाया है. फिल्म में अंग्रेज और हॉलीवुड डायरेक्टर के तौर पर सिकंदर खेर गुदगुदाते हैं. आतंकी सरगना के तौर पर पीयूष मिश्र और उनका ओलंपिया-ए-दहशत वाला सीन तो लाजवाब है. पीयूष ने हंसाने का काम बखूबी निभाया है. प्रद्युम्न सिंह ठीक हैं और वह वैसा ही करते हैं जैसा लादेन बनकर अक्सर वे करते हैं. बाकी सभी किरदार ओके हैं और बहुत याद रहने वाले नहीं हैं, जैसे वे तेरे बिन लादेन में थे.

तेरे बिन लादेन का बजट लगभग 15 करोड़ रु. था और इसने तकरीबन 50 करोड़ रु. का कारोबार किया था. 'तेरे बिन लादेन डेड और अलाइव' का बजट भी लगभग 10-15 करोड़ रु. के बीच ही बताया जा रहा है. लेकिन पहला पार्ट स्लीपर हिट रहा था, जिसकी वजह उसका कॉमिक फैक्टर और मजबूत कहानी था. इस बार फिल्म में कॉमिक फैक्टर कम है, कहानी कमजोर है और लादेन को देखकर बहुत मजा नहीं आता है. इस बार सिकंदर खेर मजेदार हैं, और फिर पीयूष मिश्र का आतंकियों का गाना और ओबामा का रैप मजेदार है. लेकिन पहली वाली कामयाबी दोहराने की उम्मीद कम ही है.


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