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फिल्म 'साला खड़ूस' को प्रोड्यूस किया है आर माधवन और राजकुमार हिरानी ने और इसकी निर्देशक हैं, सुधा कोंगरा। फिल्म की कहानी है, महिला बॉक्सर मदी और उसके कोच आदि के रिश्तों की। उनके इर्द-गिर्द खेल में फैली राजनीति और खेल में घर करती ईर्ष्या की भावना की, जो फिल्म का प्रोमो देखकर साफ हो जाता है और प्रोमो देखने के बाद मेरा सबसे बड़ा डर यह था कि कहीं जितना प्रोमो है, उतनी ही फिल्म की कहानी न हो, ऊपर से हम बॉक्सिंग पर कई फिल्में पहले ही देख चुके हैं तो एक सवाल मन में यह भी था कि शायद ही हमें इस फिल्म में कुछ नया देखने को मिले।
पर फिल्म ने मेरे सारे डर दूर कर दिए। आपको बता दूं कि इस फिल्म में आर माधवन बॉक्सिंग कोच के किरदार में हैं और उनकी शागिर्द बनी हैं, रितिका सिंह, जो रियल लाइफ में खुद एक बॉक्सर हैं। साथ ही फिल्म में इनके साथ हैं, ज़ाकिर, नासेर, मुमताज़ सरकार और बलजिंदर कौर।
तो सबसे पहले बात करते हैं, फिल्म की खामियों कीं। सबसे पहली खामी, ख़ामी है भी और नहीं भी, दरअसल, इस फिल्म को आने में काफी टाइम लग गया और इस बीच 'लाहौर', 'मैरी कॉम' और 'ब्रदर्स' जैसी फिल्में आ गईं तो हो सकता है कुछ लोग इसे सिर्फ बॉक्सिंग पर केंद्रित फिल्म समझकर सिनेमा हॉल तक न जाएं, हो सकता है दर्शक यह सोचने लगे कि विषय बासी है।
दूसरी बात यह है कि फिल्म का पहला हिस्सा कहानी की नींव रखता है, जो हो रहा है स्क्रीन पर वह खास नया तो नहीं पर फिर भी आपको बांधे रखता है। तीसरी ख़ामी हो सकता है, जो बॉक्सर है या जो इस खेल की तकनीक से भली-भांति परिचित हैं, उन्हें कहीं लगे यह बांक्सिंग फिल्म नहीं है या कहीं-कहीं फिल्मी हो गई।
तो ये थी कुछ मामूली खामिया और अब बात खूबियों की। पहली बात आप बॉक्सर न होते हुए भी इस फिल्म से जुड़ते हैं और फिल्म आपको भावनात्मक सफर पर ले जाती है। और जैसा मैंने कहा, बॉक्सिंग फिल्म का केंद्र जरूर है पर इस रिंग में और भी बहुत कुछ है बॉक्सिंग के अलावा।
फिल्म का कोई भी हिस्सा सुर से नहीं भटकता और यह फिल्म अपनी कहानी और विषय के प्रति ईमानदार रहती है। फिल्म के किरदारों ने दमदार अभिनय का परिचय दिया। आर माधवन अपने किरदार से 1 सेंटीमीटर भी हिलते नजर नहीं आते, अपने किरदार पर उनकी मेहनत साफ नजर आती है। बेहतरीन अभिनय किया है, माधवन ने। वहीं नई नवेली रितिका का बेबाकपन और रॉनेस फ़िल्म के लिए वरदान साबित होती है। पूरी ऊर्जा और ईमानदारी के साथ रितिका मदी के किरदार में जान डालने में सफल रहती हैं। फ़िल्म की स्क्रिप्ट, स्क्रिन-प्ले, डायलॉग्स, बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमाटोग्राफ़ी सब विषय को सहयोग देकर उसे एक बेहतरीन प्रोडक्ट बनाते हैं। मैं यहां अभिनेता नासेर की भी तारीफ करना चाहूंगा, वह कमाल के एक्टर हैं, रोल उनका छोटा है पर किरदार को कैसे बड़ा बनाया जाता है, उनसे सीखना चाहिए। वहीं ज़ाकिर अपनी उम्मीद पर खरे उतरते हैं। कुल मिलाकर 'साला खड़ूस एक अच्छी फिल्म और इसे यह सोचकर न छोड़ें कि बॉक्सिंग पर आप पहले भी कई फ़िल्में देख चुके हैं। मेरी तरफ से 'साला खड़ूस' को 3.5 स्टार।
पर फिल्म ने मेरे सारे डर दूर कर दिए। आपको बता दूं कि इस फिल्म में आर माधवन बॉक्सिंग कोच के किरदार में हैं और उनकी शागिर्द बनी हैं, रितिका सिंह, जो रियल लाइफ में खुद एक बॉक्सर हैं। साथ ही फिल्म में इनके साथ हैं, ज़ाकिर, नासेर, मुमताज़ सरकार और बलजिंदर कौर।
तो सबसे पहले बात करते हैं, फिल्म की खामियों कीं। सबसे पहली खामी, ख़ामी है भी और नहीं भी, दरअसल, इस फिल्म को आने में काफी टाइम लग गया और इस बीच 'लाहौर', 'मैरी कॉम' और 'ब्रदर्स' जैसी फिल्में आ गईं तो हो सकता है कुछ लोग इसे सिर्फ बॉक्सिंग पर केंद्रित फिल्म समझकर सिनेमा हॉल तक न जाएं, हो सकता है दर्शक यह सोचने लगे कि विषय बासी है।
दूसरी बात यह है कि फिल्म का पहला हिस्सा कहानी की नींव रखता है, जो हो रहा है स्क्रीन पर वह खास नया तो नहीं पर फिर भी आपको बांधे रखता है। तीसरी ख़ामी हो सकता है, जो बॉक्सर है या जो इस खेल की तकनीक से भली-भांति परिचित हैं, उन्हें कहीं लगे यह बांक्सिंग फिल्म नहीं है या कहीं-कहीं फिल्मी हो गई।
तो ये थी कुछ मामूली खामिया और अब बात खूबियों की। पहली बात आप बॉक्सर न होते हुए भी इस फिल्म से जुड़ते हैं और फिल्म आपको भावनात्मक सफर पर ले जाती है। और जैसा मैंने कहा, बॉक्सिंग फिल्म का केंद्र जरूर है पर इस रिंग में और भी बहुत कुछ है बॉक्सिंग के अलावा।
फिल्म का कोई भी हिस्सा सुर से नहीं भटकता और यह फिल्म अपनी कहानी और विषय के प्रति ईमानदार रहती है। फिल्म के किरदारों ने दमदार अभिनय का परिचय दिया। आर माधवन अपने किरदार से 1 सेंटीमीटर भी हिलते नजर नहीं आते, अपने किरदार पर उनकी मेहनत साफ नजर आती है। बेहतरीन अभिनय किया है, माधवन ने। वहीं नई नवेली रितिका का बेबाकपन और रॉनेस फ़िल्म के लिए वरदान साबित होती है। पूरी ऊर्जा और ईमानदारी के साथ रितिका मदी के किरदार में जान डालने में सफल रहती हैं। फ़िल्म की स्क्रिप्ट, स्क्रिन-प्ले, डायलॉग्स, बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमाटोग्राफ़ी सब विषय को सहयोग देकर उसे एक बेहतरीन प्रोडक्ट बनाते हैं। मैं यहां अभिनेता नासेर की भी तारीफ करना चाहूंगा, वह कमाल के एक्टर हैं, रोल उनका छोटा है पर किरदार को कैसे बड़ा बनाया जाता है, उनसे सीखना चाहिए। वहीं ज़ाकिर अपनी उम्मीद पर खरे उतरते हैं। कुल मिलाकर 'साला खड़ूस एक अच्छी फिल्म और इसे यह सोचकर न छोड़ें कि बॉक्सिंग पर आप पहले भी कई फ़िल्में देख चुके हैं। मेरी तरफ से 'साला खड़ूस' को 3.5 स्टार।
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