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करण जौहर की दुविधा और द्वंद्व


निर्माता करण जौहर का कहना है कि वह बहुत शर्मीले और संकोची व्यक्ति हैं, परंतु उनकी छवि एक वाचाल और बहुत अधिक उजागर हुए और प्रचारित व्यक्ति की है। उनका कहना है कि वे मूलत: एक मनोरंजन करने वाले अभिनेता हैं, जो जीवन में सारा समय एक आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति की भूमिका निभा रहे हैं।

बचपन में करण निहायत ही मोटे, डरपोक, कुछ हद तक जनाना व अपने में कैद व्यक्ति थे। ज्ञातव्य है कि उनके पिता यश जौहर ने अधेड़ अवस्था में विवाह किया था और बहुत वर्ष बाद उनको एकमात्र पुत्र-रत्न प्राप्त हुआ था। अत: अत्यंत लाड़-प्यार और असुरक्षा के भाव से उन्होंने उसे पाला। उन दिनों उनका परिवार श्रेष्ठि लोगों के क्षेत्र मालाबार हिल में रहता था, जहां का सामाजिक वातावरण अत्यंत गैरफिल्मी था और धनाढ्य लोग फिल्मवालों को हेय दृष्टि से देखते थे। अब पासा पलट चुका है।

यश जौहर अपने सद्व्यवहार और मिलनसारिता के कारण फिल्म उद्योग में लोकप्रिय रहे और हर एक की बीमारी या दुख में उन्होंने लोगों की भरपूर सहायता की। ‘कुली’ के समय घटित दुर्घटना के बाद अमिताभ बच्चन के लिए विदेशों से दुर्लभ दवाएं यश जौहर के सौजन्य और संपर्क से ही प्राप्त होती थीं और उनकी नेकी के फल आज तक करण को मिल रहे हैं।

बहरहाल, आदित्य चोपड़ा ने अपनी पहली फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में करण को सहायक निर्देशक बनाया और वह फिल्म में ऐसे रमे कि उनकी लगन देखकर शाहरुख-काजोल ने उन्हें फिल्म के लिए सहयोग देने की बात की। यहीं से मोटे, दब्बू, भीरू करण के जीवन में परिवर्तन आया और एक तरह से उनकी काया पलट हो गई। कोई एक घटना इस तरह से जीवन में अंतर लाती है। आज वह सफल फिल्मकार हैं और टेलीविजन पर कार्यक्रम भी करते हैं। फिल्म उद्योग में करण एक शक्ति-पुंज बनकर उभरे हैं। आदित्य चोपड़ा के सारे शागिर्र्दो में वह सफलतम शख्स हैं।

करण जौहर का यह कहना कि वह सारे समय अभिनय करते हैं, अनेक लोगों के सच को रेखांकित करता है। सभी के अनेक रूप हैं और बकौल निदा फाजली हर चेहरे के पीछे दस चेहरे छुपे हैं। हमारा यह भीतरी विभाजन ही हमारी तीव्र और ताकतवर जीवन ऊर्जा को अनेक धाराओं में प्रवाहित कर उसे मंद और कमजोर बना देता है। दुख की बात है कि संवेदना का क्षेत्र भी इसी दायरे में आ जाता है। लोकप्रिय बहाना यह है कि यह दुनियादारी का तकाजा है। अपनी नापसंदगी जाहिर करके जीना मुहाल हो सकता है।

दरअसल जीवन के निर्णायक क्षणों में अभिनय से मुक्त होना आवश्यक है। हम अपने सामाजिक दायरे में अपनी लोकप्रियता नहीं खोना चाहते, अत: अनचाहे ही ‘जीहुजूरी’ स्वभाव में शामिल हो जाती है। पसंद या नापसंद के नहीं मिलने और विभिन्न धार्मिक विश्वासों के बाद भी दो लोगों में प्रेम उत्पन्न हो सकता है। बहन-भाई समान विचारों के हो सकते हैं, परंतु प्रेमियों के लिए यह कोई आवश्यक शर्त नहीं हो सकती। प्रेम का इस कदर कारण और स्वार्थ से परे होना ही उसकी असली शक्ति है।

बहरहाल, हर व्यक्ति के भीतर एक अभिनेता छुपा है और बकौल शेक्सपीयर ‘यह दुनिया एक मंच है, जिस पर सब अपनी भूमिकाएं निभाकर पटाक्षेप कर जाते हैं।’ दरअसल इस पूरे मामले का सबसे भयावह पक्ष यह है कि जब व्यक्ति अकेला होता है और मन में विचार आते हैं, उस समय भी वह किसी न किसी भूमिका का निर्वाह कर रहा होता है और यह स्वयं के नितांत गोपनीय क्षण में किया गया अभिनय खतरनाक है। तन्हाई एक आईना है, जिसमें स्वयं की असलियत देखना आवश्यक है, परंतु आईने और अभिनय का गहरा रिश्ता है। आईना अभिनेता का सबसे गहरा दोस्त होता है और शिखर खोने के बाद उम्र की ढलान पर आईना झूठा और दुश्मन लगता है। तन्हाई को सत्य सहित साधने के लिए भीतरी ताकत लगती है।

बहरहाल, करण जौहर अपने पिता की मनपसंद और सबसे महत्वाकांक्षी अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘अग्निपथ’ की असफलता से हमेशा आहत रहे हैं और उसमें कुछ परिवर्तन करके उसे ऋतिक रोशन के साथ हिट बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगा रहे हैं, क्योंकि इसे वे अपने पिता को दी जा रही आदरांजलि के स्वरूप देख रहे हैं और इसी बात में वे सर्वथा अभिनयमुक्त हैं।
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